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children and disipline

Meri Kalam Se
Meri Kalam Se
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एक बालिका व् बालक कभी कितने नटखट व् अल्हड होते है, फिर बड़े होते है और यौवन को प्राप्त करते है. परिपक्व होकर माता व् पिता बनने की क्षमता रखते है. कभी वे खुद बच्चे थे लेकिन एक दिन वे अपने बच्चे को जन्म देते है. माता-पिता बनते ही उनके ऊपर जिम्मेदारियां पड़ती है. उन जिम्मेदारियों को निभा पाना हर स्तर पर उन्हें चुनौती लगाती है. सच कहा जाये तो माता-पिता ही बच्चे के पहले “शिक्षक” और परिवार उसकी पहली “पाठशाला” है.

बच्चों को पालने पोसने से लेकर उनके बड़े होकर एक अच्छा सफल इंसान बनते तक, माता- पिता को कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, ये बात सिर्फ एक ज़िम्मेदार अभिभावक ही समझ सकते है.

अच्छा सफल इन्सान…. क्या होता है ये? हम अपने बच्चे के सुन्दर, स्वस्थ होने के साथ-साथ, उसे बुद्धिमान, सदाचारी, स्वाभिमानी, कामयाब, अमीर, खुश देखना चाहते है. यही एक अच्छे सफल इन्सान की परिभाषा होती है.

बच्चा कच्ची मिट्टी की तरह होता है, जिस तरह कुम्हार, मिट्टी के पक्का होने से पहले उसे आकार व रूप देता है, और अस्तित्व में लाता है, (वरना वो तो मात्र एक मिटटी का धेला था.).. ठीक उसी तरह बच्चे को भी बड़ा व परिपक्व होने के पहले आकार देना आवश्यक होता है. अर्थात माता-पिता को समय रहते बच्चे में वो सभी संस्कार डालने होंगे जो एक अच्छा व सफल इंसान बनने के लिए आवश्यक है.

मुझे लगता है कि आज के इस व्यस्त जीवन में, अच्छे अभिभावक की अवधारणा गुम होती जा रही है… . कई माता पिता को लगता है कि उनकी parenting शैली सबसे अच्छी है. अच्छा parenting का मतलब है, उन्हें सदाचार और जिम्मेदारी के मूल्यों का शिक्षण देना. आज के समय में माता-पिता दोनों ही काम कर रहे है, जिसके कारण वे बच्चों के प्रति अधिक उदार होते जा रहे है, जिसका परिणाम है “अनुशासनहीनता”…..कैसे आप अपने बच्चे को अनुशासन प्रदान कर सकते हैं कि वह घर में और सार्वजनिक स्थानों में अच्छी तरह से कार्य कर सके ? हर माता पिता अपने बच्चों को दुनिया में दूसरो से सम्मानित होता देखना चाहते है. लेकिन कभी कभी यह लगता है कि हमारे बच्चे का व्यव्हार इस लक्ष्य से मीलो दूर है. एक माता पिता के रूप में आपकी जिम्मेदारी है कि आप अपने बच्चे को आत्मनिर्भर और आत्म – नियंत्रित बनने में पूरी मदद करे. रिश्तेदार, स्कूल, मंदिर, चर्च, मस्जिद, गुरूद्वारे, विशेषज्ञों की कुछ मदद होती है, लेकिन अनुशासन के लिए प्राथमिक ज़िम्मेदारी माता-पिता की ही होती है.आपको इस चुनौती के साथ कैसे आगे बढ़ना है? अपने वर्तमान parenting शैली पर एक नज़र डालें और सोचें की आप अनुशासन के मामले में कितने सुदृढ़ है….. मै यहाँ कुछ अनुशाशन तकनीको पैर प्रकाश डालना चाहती हूँ.

अच्छे व्यव्हार पर रिवार्ड (Reward for good behaviour ) :बच्चों के अच्छे व्यव्हार को स्वीकार व प्रोत्साहित करके हम उन्हें हमेशा अच्छे व्यव्हार के प्रति उत्साहित कर सकते है. उनकी समय-समय पर दूसरों के सामने तारीफ़ उन्हें उत्साहित व प्रोत्साहित करती है.
अच्छे व्यवहार पर, प्रतिक्रिया में हम उन्हें छोटी ही सही, उनकी पसंदीदा चीज़ दे दें तो उनका अच्छे कार्यों के प्रति उत्साह वर्धन होता है, जो उन्हें निरंतर अच्छे कार्यो के लिए अग्रसर करता है.

स्वाभाविक परिणाम (Natural consequences ) :जब बच्चा कोई गलत काम करता है तो उसके परिणाम को उसे स्वयं अनुभव करने दे, न की उसे उपदेश दे. उदाहरण के लिए, अगर एक बच्चे से जानबूझ कर एक खिलौना टूट जाता है, तो वह स्वयं ही महसूस karega की अब मै क्या खेलूँगा/खेलूंगी.यदि बच्चा आपके कहने पर भी नहीं सुनता है तो, यह तरीका उसे खुद सोचने पर मजबूर करता है, और वह गलती पुनः नहीं दोहराएगा.कभी-कभी, उन्हें logical consequences समझाना पड़ता है. उदाहरण के लिए, आप अपने बच्चे को बताओ कि अगर वह अपने खिलौने जगह पर नहीं रखता है, तो उन खिलौनों को एक सप्ताह के लिए हटा दिया जाएगा.

विशेषाधिकारों पर रोक (Taking away privileges ): कभी ऐसा होता है की हम बच्चे को Natural consequence और logical consequences दोनों ही नहीं बता पाते है… उदाहरण के लिए, यदि एक middle schooler समय पर होमवर्क पूरा नहीं करता, तो आप शाम के लिए टेलीविजन privilege पर रोक लगा सकते हैं. यह अनुशासन तकनीक सबसे अच्छा काम करती है. अर्थात बुरे बर्ताव पर बच्चे की पसंदीदा चीज़ पर कुछ समय के लिए तुरंत रोक लगाना बहुत प्रभावशाली होता है. खास तौर पर छोटे बच्चों (३-६ साल) के लिए.

Time outs : अगर आप जानते हैं कि वास्तव में बच्चे ने क्या गलत किया है तो आप उन्हें Time out दे सकते है. इसका मतलब होता है की यदि उसे टाइम आउट दिया गया है तो बच्चा कोई दूसरा काम नहीं कर सकता. उसे निश्चित समयावधि के लिए सिर्क एक जगह पर बैठना होगा. Time out की जगह निर्धारित होनी चाहिए, जो नीरस, उबाऊ व शांत हो, जहाँ कुछ खेला न जा सके. यह तकनीक छोटे बच्चों (२-७ साल) पर ज्यादा असर करती है, जिन्हें माता-पिता से दूर रहना बिलकुल अच्छा नहीं लगता.

दोस्तों सा बर्ताव (friendly treatment ): ऐसा ज़रूरी नहीं है की गलती करने पर हर बार बच्चों को दंड ही देने से बच्चे आपना बर्ताव सुधारते है, बल्कि वे निष्क्रिय हो जाते है. खासतौर पर ऐसा teen agers के साथ होता है. कभी -कभी बच्चों के दोस्त बनकर हमे उनकी समस्या पूछना चाहिए और जानने की कोशिश करनी चाहिए की उसके बुरे बर्ताव का कारण क्या था? उसे हमारे प्रति comfortable feeling होनी चाहिए की वो आपनी हर बात और समस्या हमसे बाँट सके. वरना वो आपनी समस्याएं हमसे छिपाने लगेगा औए अपने ही स्तर पर गलत तरीके से सुलझाने की कोशिश करेगा. उसका ऐसा करना उसे गलत मार्ग पर अग्रसर कर सकता है. उसे हमारे ब्यवहार से ऐसा महसूस होना चाहिए की यदि वह आपनी समस्या हमारे पास लेकर आता है तो उसे समस्या का समाधान मिलेगा, न की उपदेश या दंड. उससे आप ऐसा रिश्ता बनाये की वह बाहर, कही भी कोई भी गलती करके आये तो आपसे शेयर करे, न की दंड या उपदेश के डर से छिपाए.

Spanking : बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए यह तरीका बिलकुल उचित नहीं है. इससे बच्चा अधिक आक्रमक हो सकता है. वह सोच सकता है की मार-पिटाई गलती करने पर दंड का एक सामान्य तरीका है, और वह भी समय आने पर मार-पिटाई का सहारा ले सकता है.

कुल मिलाकर बात ये हुई कि, माता-पिता का योगदान ही बच्चे को सफल बनता है, और “सफलता” नाम के ताले को खोलने के लिए “अनुशासन” नाम की चाबी की आवश्यकता है. अनुशाशन के बिना व्यक्तित्व अधूरा है. यदि बच्चे को शुरू से ही अनुशाशन नहीं सिखाया गया तो वे जीवन के हर पड़ाव में असफल रहेंगे. उनमे आत्म-निर्भरता (self-reliance ) व आत्म-नियंत्रण (self-control ) नहीं पनप पाएंगे. वे कभी भी किसी को सम्मान देना नहीं सीख पाएंगे. उन्हें इस बात का एहसास कभी नहीं हो पायेगा की उचित व्यव्हार क्या है. वह स्वार्थी, और दूसरों के लिए अप्रिय हो जाएगा. वह कभी भी सामाजिकता, धैर्य, सहानुभूति, सज्जनता, नहीं सीख पायेगा. मित्र बनाने में उसे हमेशा कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. संभावित रूप से उनका व्यव्हार और भी हानिकारक होता जायेगा. ऐसा व्यव्हार, दूसरों के लिए नकारात्मक व खतरनाक साबित हो सकता है, जो उसके खुद के जीवन के सफ़र में उसे असफलताएं व तकलीफ देगा. अतः बच्चे को “अनुशासन” सिखाना हर माता-पिता की प्राथमिकता होनी चाहिए. एक अनुशाषित बच्चा हमेशा अच्छी राहों पर चल कर जीवन में सभी सफलताएँ हासिल कर ही लेता है…

“अनुशासन एक ऐसा वाहक है, जो लक्ष्यों की प्राप्ति कराता है.”


अभिलाषा शिवहरे गुप्ता
मार्च २८, २०१२

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